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The Roadmap: भारत और अमेरिका के बीच बड़े परियोजना का रोडमैप तैयार, चीन भी होगा हैरान

The Roadmap: भारत और अमेरिका के बीच पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच सहमति बनी थी, जिसके तहत दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण खनिजों (कीमती धातुओं) के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है। यह कदम चीन के खनिजों पर वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उठाया गया है। इस दिशा में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और अमेरिकी NSA जैक सुलिवन के नेतृत्व में एक बैठक हुई, जिसमें यह रोडमैप तैयार किया गया।

दो श्रेणियों में सहयोग का विस्तार

यह सहमति दो मुख्य श्रेणियों में सहयोग बढ़ाने के लिए बनाई गई है। पहली श्रेणी में, ग्रेफाइट, गैलियम और ग्रैनीमियम जैसी धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए व्यवस्था की जाएगी। दूसरी श्रेणी में, लिथियम, टाइटेनियम और गैलियम की प्रसंस्करण सुविधाओं को विकसित किया जाएगा, ताकि ये धातुएं दोनों देशों की कंपनियों को आपूर्ति की जा सकें।

उच्च तकनीकी उद्योगों में उपयोगी कीमती धातुएं

यह महत्वपूर्ण धातुएं उच्च तकनीकी उद्योगों में उपयोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए, ग्रेफाइट, गैलियम और लिथियम का उपयोग सेमीकंडक्टर, मेमोरी सेल, मोबाइल फोन, लैपटॉप, ग्रिड स्टोरेज और इलेक्ट्रिक वाहनों में किया जाता है। इन धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए भारत और अमेरिका के बीच सहयोग से इन उद्योगों में विकास की उम्मीद है।

अनुसंधान संस्थानों और कॉर्पोरेट क्षेत्रों के बीच सहयोग

भारत और अमेरिका के अनुसंधान संस्थानों और कॉर्पोरेट क्षेत्रों के बीच सहयोग का रास्ता अब साफ हो गया है। दोनों देशों के उद्योगों के लिए आवश्यक इन धातुओं की आपूर्ति और प्रसंस्करण में सहयोग से उनकी साझा समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा, विशेष रूप से उन धातुओं की कमी को दूर किया जा सकेगा जिन पर वर्तमान में चीन का वर्चस्व है।

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चीन का खनिजों में वर्चस्व और भारत की निर्भरता

चीन इस समय दुनिया के अधिकांश महत्वपूर्ण खनिजों के खनन, प्रसंस्करण और आपूर्ति में प्रमुख स्थान रखता है। उदाहरण के लिए, चीन के पास लिथियम खदानों का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के बैटरी निर्माण में उपयोग होता है, लेकिन इसके पास पूरी दुनिया के लिथियम बाजार का 60 प्रतिशत नियंत्रण है। इससे यह साफ है कि चीन का खनिजों पर नियंत्रण भारतीय उद्योगों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।

भारत की चीन पर निर्भरता

भारत इस समय 75 प्रतिशत बैटरियों का उत्पादन चीन से आयात करता है। खासकर भारत में दोपहिया और तिपहिया वाहनों में उपयोग होने वाली बैटरियों का 90 प्रतिशत आयात चीन से किया जाता है। इस निर्भरता को कम करने के लिए भारत और अमेरिका के बीच सहयोग महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह सहयोग भारत को खनिजों के क्षेत्र में अपनी स्वायत्तता बढ़ाने में मदद करेगा, खासकर उन खनिजों की आपूर्ति में जो इलेक्ट्रिक वाहनों और उच्च तकनीकी उद्योगों के लिए आवश्यक हैं।

भारत और अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण कदम

भारत और अमेरिका के बीच यह सहयोग दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। यह सहयोग चीन के खनिजों पर निर्भरता को कम करने के साथ-साथ, दोनों देशों के उद्योगों के लिए नई संभावनाओं का रास्ता खोलेगा। विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन, सेमीकंडक्टर और अन्य उच्च तकनीकी उद्योगों में लिथियम, ग्रेफाइट और गैलियम जैसी धातुओं का उपयोग बढ़ेगा, जिससे इन उद्योगों में तेजी से विकास की संभावना बनती है।

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भारत और अमेरिका के बीच खनिजों के क्षेत्र में बढ़ते सहयोग से दोनों देशों को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकता है। यह न केवल चीन के खनिजों पर निर्भरता को कम करेगा, बल्कि दोनों देशों के उद्योगों को भी मजबूती प्रदान करेगा। इस दिशा में उठाए गए कदम से दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को भी बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में वैश्विक बाजार में उनका प्रभाव और मजबूत होगा।

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